भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक सहयोग का भविष्य

भारत और यूरोपीय संघ (EU) अपने रणनीतिक साझेदारी के एक परिवर्तनकारी दौर से गुजर रहे हैं, जिसकी मुख्य वजह उच्च स्तरीय कूटनीतिक आदान-प्रदान और यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप की तात्कालिक रक्षा तत्परता है। EU का महत्वाकांक्षी “संयुक्त श्वेत पत्र” जिसमें 2030 तक €800 बिलियन के रक्षा निवेश का लक्ष्य है, भारत के तेजी से बढ़ते रक्षा निर्यात (हाल ही में $2.76 बिलियन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा) के लिए अभूतपूर्व अवसर प्रस्तुत करता है। भारत की बढ़ती रक्षा क्षमता और यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता की आकांक्षाएं दोनों पक्षों को वैश्विक सहयोग की नई रूपरेखा गढ़ने के लिए अनुकूल स्थिति में लाती हैं।

भारत-यूरोपीय संघ संबंध समय के साथ कैसे विकसित हुए?

प्रारंभिक कूटनीतिक जुड़ाव (1947-1990 के दशक):
भारत की यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) और EU के साथ संबंध 1947 में स्वतंत्रता के बाद औपचारिक मान्यता के साथ शुरू हुए।
शीत युद्ध काल में भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के साथ जुड़ी रही और EEC देशों के साथ संबंध संप्रभुता, उपनिवेशवाद-उन्मूलन और वैश्विक शांति जैसे साझा हितों पर आधारित थे।
भारत ने पश्चिमी गुट और पूर्वी यूरोप के समाजवादी देशों दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे।

शीत युद्ध के बाद का संक्रमण (1990-2000):
शीत युद्ध के अंत और सोवियत संघ के विघटन ने वैश्विक राजनीति में बदलाव किया और भारत ने अपनी विदेश नीति को अधिक आर्थिक उदारीकरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकरण की ओर मोड़ा।
1990 के दशक में भारत ने EEC देशों के साथ आर्थिक कूटनीति पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया।
भारत ने सोवियत संघ जैसे पारंपरिक साझेदारों से परे व्यापार और निवेश संबंधों में विविधता लाने का प्रयास किया।
हालाँकि आर्थिक साझेदारी में रुचि थी, परंतु राजनीतिक संबंध गौण रहे क्योंकि भारत ने “लुक ईस्ट” नीति और दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर ध्यान दिया।

भारत-EU रणनीतिक साझेदारी (2000 के दशक से वर्तमान तक):
2000 के दशक में भारत और EU के बीच संबंधों में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया, विशेषकर 2004 में रणनीतिक साझेदारी की स्थापना के बाद।
इस अवधि में भारत के EEC देशों के साथ संबंध अधिक क्षेत्रीय रूप में विकसित हुए, जिसमें रक्षा, ऊर्जा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में प्रमुख भागीदारी रही।
पोलैंड, हंगरी और चेक गणराज्य जैसे देश भारत के लिए विनिर्माण, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण व्यापार और निवेश भागीदार के रूप में उभरे।

2010 के बाद: संबंधों को मजबूत बनाना और विविधता:
2010 के बाद भारत की विदेश नीति अधिक बहुपक्षीय और विविधतापूर्ण हो गई।
EU भारत का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार बन गया है और भारत ने अपने आर्थिक प्रभाव को यूरोप में बढ़ाने के लिए अलग-अलग EEC देशों के साथ जुड़ाव बढ़ाया है।
भारत और EU जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, आतंकवाद विरोध और सतत विकास जैसे वैश्विक मुद्दों पर भी सहयोग कर रहे हैं। उदाहरणस्वरूप, 2016 में “क्लीन एनर्जी एंड क्लाइमेट पार्टनरशिप” शुरू हुई।

हालिया घटनाक्रम और भविष्य की संभावनाएं:
हाल के वर्षों में भारत-EU संबंध अधिक रणनीतिक और बहुआयामी बन गए हैं।
G20, UN, WTO जैसे मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका ने EU की भारत में रुचि को और बढ़ाया है।
भारत की CEE देशों के साथ रक्षा साझेदारी भी बढ़ी है, खासकर रूस से रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाने के प्रयासों के तहत।
EU की “Indo-Pacific Strategy” में चीन के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश में भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है।


भारत-EU रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने वाली मुख्य शक्तियाँ क्या हैं?

  1. भू-राजनीतिक बदलाव और साझा रणनीतिक हित:
    चीन के उदय और अमेरिका की अनिश्चितता से भारत और EU को सहयोग बढ़ाने की प्रेरणा मिली।
    दोनों चीन की बढ़ती भूमिका से चिंतित हैं।
    2023 में भारत ने EU की इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव और मेरीटाइम सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी में भाग लिया।
  2. डिजिटल परिवर्तन और प्रौद्योगिकी सहयोग:
    भारत की डिजिटल क्रांति ने EU के साथ प्रौद्योगिकीय संप्रभुता और समावेशिता को बढ़ावा दिया है।
    EU का डेटा सुरक्षा जोर और भारत का विशाल डिजिटल ढांचा (जैसे UPI) इस साझेदारी के मुख्य आधार हैं।
    2022 में स्थापित “India-EU Trade and Technology Council (TTC)” इसका उदाहरण है।
  3. जलवायु परिवर्तन और हरित संक्रमण सहयोग:
    भारत और EU दोनों हरित ऊर्जा और शून्य उत्सर्जन लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध हैं।
    2021 में “India-EU Clean Energy and Climate Partnership” को मजबूत किया गया।
    EU भारत के स्टील क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने में भी मदद कर रहा है।
  4. सुरक्षा और रक्षा सहयोग:
    Indo-Pacific क्षेत्र की सुरक्षा प्राथमिक है।
    भारत ने अपने रक्षा साझेदारों को विविध बनाया है और EU के साथ तकनीक और सह-निर्माण पर जोर दिया है।
    2023 में खाड़ी में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास भी हुआ।
  5. व्यापार और निवेश में वृद्धि:
    EU भारत का एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
    India-European Free Trade Association ने 2024 में “Trade and Economic Partnership Agreement (TEPA)” पर हस्ताक्षर किए।

भारत-EU संबंधों में मुख्य मतभेद क्या हैं?

  • व्यापार बाधाएँ और धीमी FTA प्रगति:
    EU के गैर-शुल्क अवरोधों (NTBs) ने भारत की पहुंच सीमित की है।
    EU में भारत की हिस्सेदारी केवल 2.2% है, जिसे संतुलित करने की आवश्यकता है।
  • पर्यावरण मानदंड बनाम आर्थिक वृद्धि:
    EU के “Carbon Border Adjustment Mechanism (CBAM)” से भारत का इस्पात क्षेत्र प्रभावित हो सकता है।
    “Deforestation-Free Products Regulation” से $1.3 बिलियन का भारतीय निर्यात जोखिम में है।
  • वैश्विक संघर्षों पर भिन्न दृष्टिकोण:
    भारत की रूस-यूक्रेन युद्ध में तटस्थता EU को पसंद नहीं है।
    भारत कूटनीति पर जोर देता है, जबकि EU यूक्रेन का समर्थन करता है।
  • बौद्धिक संपदा और डेटा शासन तनाव:
    EU के सख्त IP कानूनों और GDPR नियमों ने भारतीय आईटी और फार्मा उद्योग को प्रभावित किया है।
  • वैश्विक शासन प्राथमिकताओं में अंतर:
    भारत UNSC स्थायी सदस्यता चाहता है, पर EU का समर्थन सीमित है।

भारत क्या उपाय कर सकता है?

  1. FTA वार्ताओं में तेजी और लचीलापन:
    गैर-शुल्क बाधाओं और सेवा क्षेत्र में लचीला रुख अपनाना चाहिए।
  2. प्रौद्योगिकी भागीदारी और नवाचार:
    AI, क्वांटम कंप्यूटिंग, साइबर सुरक्षा में संयुक्त अनुसंधान केंद्र बनाए जाएँ।
  3. हरित संक्रमण सहयोग:
    EU के “Green Deal” के अनुरूप हरित प्रौद्योगिकी में निवेश करें।
  4. आव्रजन और गतिशीलता रूपरेखा:
    कुशल भारतीय श्रमिकों और छात्रों के लिए सहमतियाँ हों।
  5. ऊर्जा और संपर्क पहलों का समेकन:
    “India-Middle East-Europe Economic Corridor (IMEC)” जैसी परियोजनाओं पर काम हो।
  6. संयुक्त रक्षा औद्योगिक सहयोग:
    संयुक्त रक्षा अनुसंधान और सह-निर्माण के लिए मंच बनाएँ।
  7. सुरक्षा ढांचे पर गहरा सहयोग:
    साझा सैन्य अभ्यास और खुफिया जानकारी साझा करना।

निष्कर्ष:

भारत-EU रणनीतिक साझेदारी एक महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर रही है।
रक्षा, व्यापार और जलवायु कार्रवाई में गहराई से सहयोग करके दोनों पक्ष वैश्विक परिदृश्य को नया आकार दे सकते हैं और साझा समृद्धि व सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

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