भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की आधारशिला चुनाव हैं, जो नागरिकों को उनके प्रतिनिधियों को चुनने और सार्वजनिक शासन को आकार देने का अधिकार देते हैं। 96.88 करोड़ से अधिक पंजीकृत मतदाताओं के साथ, भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक अभ्यास करता है, जो एक मजबूत संवैधानिक और कानूनी ढांचे द्वारा संचालित है। फिर भी, इस प्रक्रिया पर धनबल, अपराधीकरण, मतदाता धोखाधड़ी और चुनावी अनियमितताओं जैसी समस्याओं का दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐतिहासिक सुधारों और न्यायिक हस्तक्षेपों के बावजूद भी कई बुनियादी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
भारत में चुनाव संचालन को नियंत्रित करने वाले प्रमुख प्रावधान कौन से हैं?
चुनाव आयोग की संवैधानिक शक्ति:
अनुच्छेद 324 भारत के चुनाव आयोग (ECI) को चुनावों की देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार देता है।
यह संसदीय और राज्य चुनावों के स्वतंत्र व निष्पक्ष संचालन की संस्थागत जिम्मेदारी स्थापित करता है।
मतदाता सूची तैयार करना:
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत मतदाता सूचियों की तैयारी और संशोधन होता है।
इसमें निर्वाचन अधिकारियों की नियुक्ति और निर्वाचन क्षेत्रों के अनुसार मतदाता सूची का प्रबंधन शामिल है।
चुनाव प्रक्रिया का नियमन:
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA 1951) चुनाव पूर्व प्रक्रिया और चुनावों के संचालन को नियंत्रित करता है।
यह अर्हता, अयोग्यता, चुनाव विवादों की प्रक्रिया तथा अपराधों व दंड का निर्धारण करता है।
मतदाता सूची प्रबंधन के नियम:
1960 के मतदाताओं का पंजीकरण नियम, 1950 के अधिनियम को लागू करता है, जिसमें नाम संशोधन और हटाने की प्रक्रिया शामिल है।
सीमा पुनर्निर्धारण:
सीमा निर्धारण अधिनियम, 2002 जनगणना के बाद संसदीय और विधानसभा सीटों की सीमाओं के पुनर्निर्धारण की शक्ति देता है, ताकि जनसांख्यिकी के अनुसार उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
आदर्श आचार संहिता (MCC):
कानूनी रूप से बाध्यकारी न होते हुए भी MCC नैतिक चुनाव आचरण का मार्गदर्शन करती है, जिसमें कई प्रावधान BNS और RPA 1951 के तहत लागू होते हैं।
न्यायिक निगरानी और जवाबदेही:
सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी नियमों की वैधता बनाए रखी है और चुनावी कानूनों की प्रगतिशील व्याख्या में सहायता की है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म एकीकरण:
ERONET प्रणाली ने राज्यों में मतदाता सूचियों के केंद्रीकृत डिजिटल प्रबंधन की सुविधा दी है। इससे पहले विकेंद्रीकृत EPIC प्रणाली के कारण उत्पन्न डुप्लीकेट EPIC नंबर की समस्या सुलझाई गई।
चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी प्रमुख समस्याएँ क्या हैं?
- VVPAT मिलान की सीमित सीमा
- मतदाता सूची में गड़बड़ी और डुप्लीकेट EPIC नंबर
- MCC का उल्लंघन और नफरत फैलाने वाले भाषण
- राजनीतिक दलों के खर्च पर कोई सीमा नहीं
- राजनीति का अपराधीकरण (2024 में 46% सांसदों पर आपराधिक मामले)
- फर्जी समाचार और तकनीक का दुरुपयोग
- कई सीटों से चुनाव लड़ना
- चुनावी खर्च और वित्तीय बोझ में वृद्धि
- राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी
- FPTP प्रणाली के कारण अल्पमत जीत
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व में असमानता (सीमांकन के कारण)
लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आवश्यक प्रमुख चुनाव सुधार
- वैज्ञानिक VVPAT मिलान प्रणाली: यदि किसी क्षेत्र में गड़बड़ी मिलती है तो वहाँ पूरा मैनुअल VVPAT मिलान अनिवार्य हो।
- कुलाइज़र मशीनों की शुरुआत: इससे वोटों को मिलाकर गिनती करने में मदद मिलेगी और बूथवार डेटा से होने वाले डर को कम किया जा सकेगा।
- डुप्लीकेट EPIC नंबर समाप्त करना: आधार से EPIC लिंक कर फर्जी वोटर पहचान समाप्त की जाए, डेटा सुरक्षा सुनिश्चित हो।
- बार-बार MCC उल्लंघन करने वालों का स्टार प्रचारक दर्जा रद्द हो।
- RPA में संशोधन कर राजनीतिक दलों के खर्च पर भी सीमा तय हो।
- ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ योजना से चुनाव खर्च घट सकता है।
- आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का खुलासा अनिवार्य और प्रभावी हो।
- राजनीतिक अपराधों के लिए विशेष अदालतें और तेज सुनवाई।
- एकाधिक सीटों से चुनाव पर रोक या अतिरिक्त खर्च का भुगतान उम्मीदवार से लिया जाए।
- उम्मीदवारों के बार-बार क्षेत्र बदलने पर cooling-off period लागू हो।
- राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र लागू हो, जैसे नेतृत्व के कार्यकाल की सीमा।
- राजनीतिक दलों को RTI के तहत लाना।
- SVEEP कार्यक्रम को बढ़ाकर फेक न्यूज की जागरूकता शामिल करना।
- डिजिटल प्रचार और फर्जी खबरों पर सख्ती।
- राष्ट्रीय चुनाव निधि (National Election Fund) की स्थापना और आंशिक राज्य वित्त पोषण की व्यवस्था।
निष्कर्ष
चुनाव सुधार भारत के लोकतांत्रिक वैधता, नागरिक विश्वास और संस्थागत अखंडता को मजबूत करने के लिए अनिवार्य हैं। पारदर्शिता अपनाकर, स्वतंत्र संस्थानों को सशक्त बनाकर और प्रणालीगत खामियों को दूर कर भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि इसके चुनाव वास्तव में प्रतिनिधि और निष्पक्ष बने रहें। इसके लिए सरकार, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मीडिया और नागरिक समाज सभी की सामूहिक प्रतिबद्धता आवश्यक है।