Drainage problems in Urban India

दिल्ली, मुंबई जैसे भारतीय शहरों में हाल के वर्षों में शहरी बाढ़ की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसका मुख्य कारण खराब जल निकासी प्रणाली, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती कंक्रीटीकरण है। इसके चलते शहरी बाढ़ प्रबंधन पर फिर से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

क्या है शहरी जल निकासी संकट?

शहरी जल निकासी प्रणाली वह आधारभूत संरचना है जो वर्षा जल को नियंत्रित करने और शहरों में बाढ़ रोकने का कार्य करती है। परंतु, आज भारत के प्रमुख शहरों में ये प्रणाली विफल हो रही हैं।


हाल की स्थिति:

  • MoHUA के अनुसार, 70% से अधिक शहरी क्षेत्रों में वैज्ञानिक रूप से योजना बनाई गई जल निकासी प्रणाली नहीं है।
  • मुंबई:
    • जल निकासी प्रणाली 1860 के दशक की है, जो केवल 25 मिमी/घंटा वर्षा को झेल सकती है।
    • अब अक्सर 100 मिमी/घंटा से अधिक वर्षा होती है।
    • पिछले 40 वर्षों में 80% प्राकृतिक जल निकाय खो चुके हैं।
  • दिल्ली:
    • जल निकासी मानक 1976 के हैं, जो केवल 50 मिमी/दिन के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
    • मई 2025 में एक ही दिन में 185.9 मिमी वर्षा हुई, जो सामान्य से 9 गुना अधिक थी।
  • बेंगलुरु:
    • प्राकृतिक नदी प्रणाली नहीं है।
    • संकरे और पुराने जल निकासी नाले (SWD) आसानी से ओवरफ्लो हो जाते हैं।
    • 65% झीलें अतिक्रमण की शिकार हैं, बेलंदूर और वार्थुर झीलों के चारों ओर अब केवल कंक्रीट है।

नालों की विफलता के कारण

प्राकृतिक कारण:

  • तेज और तीव्र वर्षा: जलवायु परिवर्तन के कारण कम समय में अधिक वर्षा की घटनाएं बढ़ी हैं।
    • उदाहरण: 2023 में दिल्ली में एक घंटे से कम समय में 100 मिमी+ वर्षा दर्ज की गई।
  • निचले भूभाग: मुंबई और बेंगलुरु जैसे कुछ इलाके स्वाभाविक रूप से जलभराव के लिए संवेदनशील हैं।

मानवजनित कारण:

  • अयोजित शहरीकरण: फ्लडप्लेन पर अतिक्रमण और कंक्रीटीकरण के कारण मिट्टी की जल अवशोषण क्षमता घटी है।
  • पुराने डिज़ाइन मानक: अधिकांश जल निकासी व्यवस्था 1-in-2 साल की वर्षा को ध्यान में रखकर बनी है, जो आज के लिए अपर्याप्त है।
  • अवैध निर्माण: नालों पर अवैध ढक्कन रखकर उन्हें साफ करने में बाधा आती है।
  • मिश्रित सीवेज और वर्षा जल: पटना और भोपाल जैसे शहरों में अलग-अलग सीवेज और ड्रेनेज लाइनों की कमी।

सरकारी प्रयास:

  • स्टॉर्म वॉटर ड्रेनेज मैन्युअल (2019): नई जल निकासी प्रणाली के लिए उच्च रिटर्न पीरियड (1-in-5 या 1-in-10 साल) का सुझाव।
  • AMRUT 2.0 योजना: साफ जल निकायों के चारों ओर एकीकृत जल निकासी नेटवर्क और वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहन।
  • जल शक्ति अभियान व अटल भूजल योजना: शहरी क्षेत्रों में चेक डैम व रिचार्ज पिट द्वारा भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा।
  • मॉडल बिल्डिंग बाय लॉज (MBBL), 2016: 100 वर्ग मीटर से बड़े प्लॉटों पर वर्षा जल संचयन अनिवार्य।
  • अमृत सरोवर मिशन: शहरी जल निकायों का पुनर्जीवन ताकि वर्षा जल को रोकने में सहायता मिले।
  • GIS आधारित ड्रेनेज मैपिंग: दिल्ली जैसे शहर भूमि उपयोग के अनुसार जल निकासी का पुन: डिजाइन कर रहे हैं।

आगे का रास्ता:

  • भूमिगत जल भंडारण: सार्वजनिक स्थानों के नीचे वर्षा जल रिटेंशन टैंक बनाए जाएं।
  • निर्माण नियमों का पालन: MBBL और ज़ोनिंग कानूनों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाए।
  • विकेन्द्रीकृत समाधान: छतों पर बागवानी, पानी सोखने वाले फुटपाथ और जैव स्वेल्स को बढ़ावा दिया जाए।
  • नियमित सफाई और रखरखाव: खुले और ढके दोनों प्रकार के नालों की समय-समय पर सफाई अनिवार्य।
  • जन-जागरूकता: कचरा प्रबंधन और जल संरक्षण को लेकर शहर स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं।

निष्कर्ष:

भारत का जल निकासी संकट पुराने बुनियादी ढांचे, अव्यवस्थित विकास और चरम जलवायु स्थितियों का परिणाम है। समाधान मौजूद हैं, लेकिन इनकी सफलता बहु-स्तरीय समन्वय, सख्त क्रियान्वयन और दूरदर्शी शहरी नियोजन पर निर्भर है। अब समय है कि हम जल निकासी प्रणाली को एक प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण से हटा कर एक लचीली और टिकाऊ प्रणाली की ओर बढ़ाएं

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