राजुला और मालूशाही की प्रेम कथा

राजुला और मालूशाही की प्रेम कथा

बहुत समय पहले उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में एक शक्तिशाली राजा दुलाशाही का शासन था, जो बैरेठ (आज का चौखुटिया) नामक स्थान में रहते थे। राजा और उनकी रानी धर्मा के पास सब कुछ था—धन, वैभव और एक बड़ा राज्य। लेकिन उन्हें एक संतान की कमी खलती थी। वे रोज़ बागेश्वर के बागनाथ मंदिर में संतान प्राप्ति की प्रार्थना करते।

उधर, पास के शौका क्षेत्र में एक व्यापारी सुनपति शौका और उनकी पत्नी गंगुली भी संतान की कामना में तप कर रहे थे। भाग्य ने दोनों दंपतियों को बागनाथ मंदिर में मिलाया। दोनों रानियाँ एक-दूसरे की पीड़ा समझ गईं और उन्होंने वादा किया कि यदि एक को पुत्र और दूसरी को पुत्री हुई, तो वे उन्हें आपस में विवाह बंधन में बाँध देंगे।

कुछ समय बाद, रानी धर्मा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, नाम रखा गया मालूशाही, और गंगुली को एक सुंदर कन्या मिली, नाम पड़ा राजुला। वचन के अनुसार, बचपन में ही दोनों का प्रारंभिक विवाह करवा दिया गया।

लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था।

एक भविष्यवाणी ने राजा दुलाशाही को चेतावनी दी कि मालूशाही का जीवन तभी सुरक्षित रहेगा जब उसका विवाह शैशव अवस्था में हो जाए। विवाह के कुछ समय बाद ही राजा का निधन हो गया। दरबार में षड्यंत्रकारियों ने यह अफ़वाह फैला दी कि राजुला अशुभ है और उसी के कारण राजा की मृत्यु हुई। रानी ने यह सुनकर निर्णय लिया कि मालूशाही को कभी यह नहीं बताया जाएगा कि उसका विवाह हो चुका है।

समय बीतता गया।

राजुला एक सुंदर, बुद्धिमान और साहसी युवती बनी। एक दिन उसने अपनी माता से दुनियादारी और राजाओं की बात पूछी। माँ ने उसे बैरेठ के राजकुमार मालूशाही के बारे में बताया। उसका नाम सुनते ही राजुला के मन में एक अद्भुत आकर्षण जागा। उसने निश्चय किया कि वह केवल मालूशाही से ही विवाह करेगी, जबकि वह नहीं जानती थी कि वह पहले ही उससे विवाह कर चुकी है।

इसी समय मालूशाही ने एक स्वप्न में राजुला को देखा और उसका रूप देखकर प्रेम में पड़ गया। वह उसका नाम नहीं जानता था, लेकिन उसे ढूँढने की लालसा जाग उठी।

तभी, शक्तिशाली और क्रूर राजा हूण विकीपाल को राजुला की सुंदरता की खबर लगी और उसने उसके पिता को धमकी दी कि यदि राजुला से उसकी शादी नहीं करवाई गई तो वह युद्ध करेगा। मजबूर होकर, लेकिन सच्चे प्रेम के वशीभूत होकर, राजुला एक रात घर छोड़कर अकेली बैरेठ की ओर चल पड़ी, सिर्फ़ एक हीरे की अंगूठी और दृढ़ विश्वास के साथ।

बैरेठ पहुँचकर उसने मालूशाही को ढूँढा, लेकिन तब तक रानी ने उसे एक खास दवा पिला दी थी जिससे वह बेहोश था। राजुला ने रोते हुए उसके पास एक चिट्ठी और अंगूठी रख दी और दुखी होकर वापस चली गई।

जब मालूशाही को होश आया और उसे चिट्ठी और अंगूठी मिली, तो सारा सच उसके सामने आ गया। वह टूट गया। उसे समझ आया कि वह राजुला से बचपन में ही विवाह कर चुका था, और उसे सालों तक झूठ में रखा गया। वह अपनी माँ और दरबारियों से नाराज़ होकर राजमहल छोड़कर निकल पड़ा और प्रसिद्ध गुरु गोरखनाथ की शरण में गया।

गोरखनाथ ने उसे योग विद्या, आत्मबल और भेष बदलने की कला सिखाई। बाल त्यागकर, वस्त्र बदलकर, वह एक साधु के रूप में निकल पड़ा, अपनी प्रेमिका राजुला को वापस पाने।

उधर, राजुला की शादी अब विकीपाल से तय हो चुकी थी। विवाह से कुछ दिन पहले, साधु वेश में मालूशाही हूण राज्य पहुँचा और राजुला से भिक्षा माँगी। राजुला ने उसे पहचान लिया—उसकी आँखें, उसकी बातें वही थीं।

मालूशाही ने अपना परिचय दिया। दोनों प्रेमी फिर मिले। मालूशाही ने गुप्त रूप से सेना को संगठित किया, युद्ध किया और विकीपाल को पराजित कर दिया

इस तरह, वर्षों की तड़प, दुःख और इंतज़ार के बाद, राजुला और मालूशाही फिर से मिल गए और उनका प्रेम अमर हो गया।


कथा का संदेश

राजुला और मालूशाही की प्रेम कथा केवल एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि यह साहस, वचनबद्धता, संघर्ष और सच्चे प्रेम की मिसाल है। आज भी उत्तराखंड के लोक गायक इस कथा को गाते हैं, और यह गाथा पर्वतों की वादियों में गूंजती रहती है।


https://www.nytimes.com/2023/03/21/travel/himalayas-folk-tale-rajula-malushahi.html

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