नागा बनने के लिए 108 बार डुबकी, खुद का पिंडदान:पुरुषों की नस खींची जाती है; महिलाओं को देनी पड़ती है ब्रह्मचर्य की परीक्षा

1 फरवरी 1888, प्रयाग में कुंभ चल रहा था। इसी बीच ब्रिटेन के अखबार ‘मख्जान-ए-मसीही’ में कुंभ को लेकर एक खबर छपी। खबर में लिखा था- ‘कुंभ में 400 वस्त्रहीन साधुओं ने जुलूस निकाला। लोग इनके दर्शन के लिए दोनों तरफ खड़े थे। कुछ लोग इनकी पूजा भी कर रहे थे। इनमें पुरुषों के साथ महिलाएं भी थीं। एक अंग्रेज अफसर इनके लिए रास्ता बनवा रहा था। ब्रिटेन में सरकार न्यूडिटी पर सजा देती है, लेकिन इंडिया में तो वस्त्रहीन साधुओं के जुलूस में जॉइंट मजिस्ट्रेट रैंक का अफसर भेजा जा रहा। ये दुखद है।’

नागा बनने की 3 स्टेज, अखाड़े वाले घर जाकर करते हैं पड़ताल

आमतौर पर नागा बनने की उम्र 17 से 19 साल होती है। इसके तीन स्टेज हैं- महापुरुष, अवधूत और दिगंबर, लेकिन इससे पहले एक प्रीस्टेज यानी परख अवधि होती है। जो भी नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में आवेदन देता है, उसे पहले लौटा दिया जाता है। फिर भी वो नहीं मानता, तब अखाड़ा उसकी पूरी पड़ताल करता है।

अखाड़े वाले उम्मीदवार के घर जाते हैं। घर वालों को बताते हैं कि आपका बेटा नागा बनना चाहता है। घरवाले मान जाते हैं तो उम्मीदवार का क्रिमिनल रिकॉर्ड देखा जाता है।

इसके बाद नागा बनने की चाह रखने वाले व्यक्ति को एक गुरु बनाना होता है और किसी अखाड़े में रहकर दो-तीन साल सेवा करनी होती है। वरिष्ठ संन्यासियों के लिए खाना बनाना, उनके स्थानों की सफाई करना, साधना और शास्त्रों का अध्ययन करना, इनका काम होता है।

वह एक टाइम ही भोजन करता है। काम वासना, नींद और भूख पर काबू करना सीखता है। इस दौरान यह देखा जाता है कि वो मोह-माया के चक्कर में तो नहीं पड़ रहा। उसे घर-परिवार की याद तो नहीं आ रही। अगर कोई उम्मीदवार भटका हुआ पाया जाता है, तो उसे घर भेज दिया जाता है।

जब किसी साधु का निधन हो जाता है, तो उसकी देह को सीधी स्थिति में बैठाने के लिए एक लकड़ी का ढांचा बनाया जाता है। फिर एक गड्‌ढा खोदकर समाधि दे दी जाती है। समाधि के समय मुंह पूर्व या उत्तर-पूर्व की ओर होता है। काशी, प्रयाग, हरिद्वार में ‘धनी’ नागाओं को पत्थर बांधकर गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। नागा के निधन के 40वें दिन सामूहिक भोज होता है, जो एक बड़े भंडारे जैसा होता है।

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