उत्तराखंड की उन ऊँची पर्वत श्रंखलाओं में, जहाँ बादल सदियों पुराने देवदार के पेड़ों को चूमते हैं, और नदियाँ पुराने समय की कहानियाँ अपने साथ बहा ले जाती हैं — वहाँ एक अजीब, रहस्यमयी ध्वनि गूंजती है — घंटियों की आवाज़।
ये कोई आम मंदिर की घंटियाँ नहीं हैं। ये उस भगवान की घंटियाँ हैं जिसने कभी सिंहासन नहीं पाया, लेकिन आज करोड़ों दिलों का देवता है।
एक ऐसा योद्धा, जिसने कभी तलवार नहीं उठाई,
एक ऐसा बेटा, जिसे उसके ही पिता ने धोखा दिया,
फिर भी जो क्रोध में नहीं, विश्वास में अमर हुआ।
उसे कहते हैं — गोलू देवता,
न्याय के देवता,
सफ़ेद घोड़े पर सवार वह अदृश्य राजा,
जो वहाँ न्याय करता है जहाँ दुनिया मुँह मोड़ लेती है।
पर एक राजकुमार कैसे बना एक देवता?
और क्यों आज भी लोग देश के कोने-कोने से एक मंदिर में चिट्ठियाँ भेजते हैं, मानो वो सचमुच पढ़ेगा और जवाब देगा?
यह सिर्फ़ कहानी नहीं…
यह एक जीवित लोककथा है।
बहुत समय पहले, कुमाऊँ की हरी-भरी वादियों में जन्म हुआ एक ऐसे बालक का, जिसकी रगों में न केवल राजवंश का खून था, बल्कि देवत्व की रोशनी भी। उसका नाम था — राजकुमार गोलू, राजा झाल राय और कालीनाग की कन्या की संतान।
गोलू बचपन से ही अलग था। जहाँ दूसरे राजकुमार युद्ध सीखते, वहाँ गोलू लोगों की बातें सुनना और सच्चाई में न्याय करना सीखता।
वह सफेद घोड़े पर चढ़कर गांव-गांव जाता, झगड़ों को सुलझाता, और लोगों का दिल जीतता। उसकी आंखों में सच्चाई की चमक थी, और उसकी बातों में वो असर, जो झगड़े को मुस्कान में बदल देता।
गोलू देवता न्याय देने, अपने भक्तों की मदद करने और उनके विवादों का समाधान करने के लिए जाने जाते हैं। इसलिए उन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। गोलू देवता का इतिहास बहुत समृद्ध है और वे गौर भैरव (भगवान शिव) के अवतार माने जाते हैं।
स्थानीय मान्यता के अनुसार, कैट्यूरी राजवंश के राजा झल्लुराई की सात रानियां थीं, लेकिन उनमें से किसी को भी संतान नहीं हुई। इससे राजा बहुत चिंतित थे कि उनके बाद कौन राज्य की देखभाल करेगा। झल्लुराई अपने इष्ट देव और कुल देवता भैरव की पूजा किया करते थे। एक दिन भैरव स्वयं राजा के सामने प्रकट हुए और बताया कि आठवीं रानी से उनका अवतार पैदा होगा क्योंकि बाकी रानियों में संतान उत्पन्न करने की क्षमता नहीं है।
एक दिन राजा झल्लुराई शिकार पर गए और रास्ते में प्यास लगी। उन्होंने अपने सैनिकों को पास की एक झील से पानी लेने भेजा, लेकिन जब वे वापस नहीं आए तो राजा स्वयं पानी लेने गए। जैसे ही वह पानी पीने लगे, उन्होंने पास एक महिला को खड़ा देखा और उनसे पूछा कि उनके सैनिक क्यों नहीं लौटे। महिला मुस्कुराई और बोली, “यह मेरा तालाब है, अनुमति लेकर ही पानी पी सकते हो।”
राजा ने कहा, “मैं राजा हूँ, मुझे प्यास लगी है, मुझे पानी चाहिए।” महिला ने उत्तर दिया, “अगर आप राजा हो तो आपको ताकतवर होना पड़ेगा, इसलिए आपको एक परीक्षा देनी होगी।” तालाब के पास दो भैंसें लड़ रही थीं, महिला ने राजा से कहा कि उन्हें रोको। कई प्रयासों के बाद भी राजा असफल रहे, लेकिन महिला ने कुछ ही सेकंड में भैंसों को रोक दिया। राजा उनकी बुद्धिमत्ता से प्रभावित हुआ और शादी का प्रस्ताव रखा। महिला ने कहा कि उसके पांच भाई हैं, जिन्हें पंछ देव कहा जाता है, और शादी के लिए उनकी अनुमति जरूरी है। भाईयों ने अनुमति दी और दोनों की शादी हुई। गोलू देवता की माता का नाम कालिंका था, इसलिए गोलू देवता पंछ देवों के भतीजे भी कहलाते हैं।
शादी के बाद कालिंका गर्भवती हुईं, लेकिन बाकी रानियों को जलन हुई। उन्होंने झूठ फैलाया कि कालिंका ने सिलबट्टा (एक चक्की का पत्थर) दिया है और बच्चे को सिलबट्टे से बदल दिया गया है। जब राजा और अन्य लोगों को यह बात पता चली, तो वे हैरान रह गए। क्रोधित होकर और भ्रमित होकर उन्होंने बच्चे को एक संदूक में बंद कर काली नदी में फेंक दिया।
बच्चा मछुआरे के हाथ लगा, जिसने उसे गोरी नदी में संदूक में पाया। इसलिए गोलू देवता को गोरिया भी कहा जाता है। मछुआरे ने बच्चे को पाला, जो बड़ा होकर धर्मात्मा और बुद्धिमान बन गया। बचपन में गोलू देवता लोगों की मदद करने लगे। एक दिन उन्होंने अपने पिता से घोड़ा माँगा। मछुआरे के लिए घोड़ा खरीदना मुश्किल था, इसलिए उसने लकड़ी का घोड़ा बना दिया। गोलू देवता रोज उस घोड़े को पानी पिलाने लेकर जाते थे।
एक दिन गोलू देवता उस जगह पहुँचे जहाँ सभी सात रानियाँ झील के पास थीं। उन्होंने घोड़े को पानी पिलाने के लिए जगह माँगी, लेकिन रानियों ने हँसते हुए कहा कि लकड़ी का घोड़ा पानी कैसे पी सकता है। रानी ने सैनिक को आदेश दिया कि उस बच्चे को पकड़कर राजा के सामने लाओ। राजा ने जब गोलू देवता से पूछा, तो उसने जवाब दिया, “अगर कोई स्त्री सिलबट्टा जन्म दे सकती है, तो लकड़ी का घोड़ा भी पानी पी सकता है।” यह सुनकर राजा और लोग चौंक गए और राजा ने गोलू देवता को अपना पुत्र मान लिया।
राजा ने अपनी रानियों की गलतियों को समझकर उन्हें कैद कर दिया। बच्चा उनकी माफी मांगने लगा और बड़े होकर वह न्याय का देवता, कार्तिकेय गोलू, बन गया, जिनका मंदिर चम्पावत जिले में है।
इसके बाद गोलू देवता इतने प्रसिद्ध हो गए कि लोग अपने समस्याओं के साथ उनके पास आने लगे। गोलू देवता तुरंत न्याय देते और हर किसी को न्याय मिल जाता। वे कभी नहीं सोते थे और हमेशा जरूरतमंदों को न्याय देने के लिए तैयार रहते थे। उन्होंने अन्य स्थानों की यात्राएँ कीं और न्याय दिया। इसी वजह से उनके कई मंदिर बने जहाँ वे न्याय देने आते थे।

आज अल्मोड़ा के चितई गोलू देवता मंदिर में हज़ारों घंटे लटकी हैं —
हर एक घंटी किसी पूरी हुई प्रार्थना की गवाही देती है।
गोलू देवता न सोने के हार पहनते हैं, न बड़ी बड़ी पूजा मांगते हैं।
वो बस सच, विश्वास और साहस में विश्वास करते हैं।
जो दुनिया में न्याय नहीं पा सके,
उन्हें वो अपने तरीके से दिलाते हैं।
तो अगर आप कभी खुद को अकेला महसूस करें,
अगर आपको लगे कि कोई आपकी बात नहीं सुन रहा —
तो उत्तराखंड के पहाड़ों में जाइए,
गोलू देवता के मंदिर पर एक चिट्ठी छोड़ आइए,
एक घंटी टांग दीजिए, और
सच बोल दीजिए।
क्योंकि कहते हैं —
न्याय आज भी एक सफेद घोड़े पर सवार होकर आता है।
और गोलू देवता…
अब भी सुनते हैं।
