बुरांश कुमाऊँ का फूल हो कर के भी NYC तक कैसे पंहुचा ?

एक आम पहाड़ी परिवार और बुरांश की कहानी

पहाड़ के एक साधारण से गांव में एक बिल्कुल सामान्य परिवार रहता था। इस परिवार ने अपनी इकलौती बेटी का विवाह डांडियों के पार एक गांव में कर दिया था। कई साल बीत गए, लेकिन बेटी मायके नहीं आ पाई।

मां-बाप बेटी की याद में तड़पते जा रहे थे, और इधर बेटी भी मां-बाप से मिलने को व्याकुल थी। उसका पति परदेस में था, और घर की सास उसे चैन से जीने नहीं देती थी। दिनभर खेतों में काम, फिर घर का काम—थककर चूर हो जाती तो मायके की यादों में खो जाती। पेड़ों से बात करती, अपने मन को बहलाने की कोशिश करती।

एक दिन उसे खबर मिली कि उसकी मां बहुत बीमार है। यह सुनते ही वह मायके जाने को तड़प उठी। सास से विनती की, पर सास ने कहा – पहले सारे काम निपटाओ, फिर जाना। उसने जानबूझकर बेटी को इतने काम दे दिए कि वह समय पर पूरा नहीं कर सकी। शाम हो गई। फिर भी बेटी ने बहुत मिन्नतें की, तब कहीं जाकर उसे मायके जाने दिया गया।

रात में ही वह जंगल के रास्ते मायके निकल पड़ी। जैसे-तैसे वह अपने गांव पहुंची, मां-बाप को देखा, जो अब बस छाया मात्र रह गए थे। वह दौड़कर उनसे लिपट गई, और तीनों की आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी। पर कुछ ही देर में बेटी को एहसास हुआ कि मां-बाप न कुछ बोल रहे हैं, न उनकी आंखों से आंसू आ रहे हैं। उसने झकझोरा भी, लेकिन अब उनका शरीर ठंडा हो चुका था। मानो वो बस अपनी बेटी की एक आखिरी झलक देखने के लिए ही जीवित थे।

मां-बाप जा चुके थे।

कुछ दिनों बाद उस घर में एक बुरांश का पौधा उग आया, जिस पर दो सुंदर लाल फूल खिले। तब से बेटी हर साल बुरांश के फूलों के मौसम में मायके आती, उन फूलों से मिलती, और अपने मां-बाप को याद कर खुद को हल्का करती।

कहा जाता है कि तभी से जब-जब पहाड़ों में बुरांश खिलता है, बेटियां मायके आती हैं और अपने बीते रिश्तों की मिठास को फिर से जीती हैं।

बुरांश का महत्व और कहानी

बुरांश केवल एक फूल नहीं है, यह पहाड़ की भावनाओं और यादों का प्रतीक बन गया है। यह ना केवल उत्तराखंड की खूबसूरती को बढ़ाता है, बल्कि प्रवासी पहाड़वासियों को भी अपने गांव की याद दिलाता है।

उत्तराखंड का राज्य वृक्ष होने के साथ-साथ बुरांश नेपाल और अमेरिका के वाशिंगटन राज्य का भी राज्य पुष्प है। वाशिंगटन का राज्यपुष्प बनने की अपनी एक अलग रोचक कहानी है, जिसे हम आने वाले भागों में विस्तार से जानेंगे।

बुरांश का वैज्ञानिक परिचय

जिस बुरांश की बात हो रही है, उसका वैज्ञानिक नाम है Rhododendron। यह दो ग्रीक शब्दों से मिलकर बना है – ‘Rhodon’ यानी गुलाबी/लाल और ‘Dendron’ यानी पेड़। जब यह फूल खिलते हैं तो पूरा जंगल लाल गुलाब-सा चमक उठता है।

बुरांश के पेड़ समुद्र तल से 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। ये सदाबहार होते हैं, पर फूल मार्च और अप्रैल में ही आते थे – अब जलवायु परिवर्तन के कारण ये समय से पहले भी खिलने लगे हैं।

यह पेड़ उत्तराखंड के अलावा पूरे हिमालय क्षेत्र और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाता है। इसकी 1200 से अधिक प्रजातियाँ हैं। कुछ पौधे छोटे होते हैं, केवल कुछ सेंटीमीटर ऊंचे, जबकि कुछ पेड़ 30 मीटर तक भी होते हैं।

इतिहास में बुरांश की उपस्थिति

बुरांश की पहली वैज्ञानिक रिकॉर्डिंग 1650 में हुई थी जब ब्रिटेन में Rhododendron hirsutum की खेती शुरू हुई। बाद में इसकी कई अन्य प्रजातियां साइबेरिया, पुर्तगाल, दक्षिण स्पेन और भारत (1896 में श्रीनगर) में पाई गईं।

बुरांश: एक फूल, अनेक अर्थ

बुरांश न केवल प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है, बल्कि इसका औषधीय, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व भी है। यह फूल पहाड़ के दिलों से जुड़ा हुआ है। कवि सुमित्रानंदन पंत ने भी इसकी सुंदरता को कविता में पिरोया:

“सर जंगल मा त्वे ज़ा कोई ना हरे कोई ना फूला, झा बुरास जंगल जैसी जली जा…”

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